Tuesday, December 14, 2010

जैसे हो याद ..


एक गीत लिखने की कोशिश हैं आप बताए कितना कामयाब हो पाया

साँसों के समंदर मे दिल की
मैं, कश्ती डुबोने .निकला हूँ
जैसे हो याद ...लड़कपन की,
ओर उसको भुलाने निकला हूँ

क्यों मुझसे वफ़ा तुम करते हो
क्यों मुझसे तआल्लुक रखते हो
मैं खाक हूँ जिन ....वीरानों की
उन मैं ही समाने ....निकला हूँ
जैसे हो याद ...लड़कपन की.ओर उसको भुलाने निकला हूँ

वो आग की जिसके साए मैं
तुम अपने गमो को भूल गये
वो शम्म कही पर मध्यम हैं
मैं उसको जलाने ..निकला हूँ

कई शहर उजड़ते .....देखे हैं
कई बस्तियाँ डूब गई दिलकी
इस दौर-ए-खिजाँ से दूर कहीं
एक गाँव बसाने ..निकला हूँ
जैसे हो याद ...लड़कपन की.ओर उसको भुलाने निकला हूँ

बरसों से ...जनाज़ों को मैने
इस राह .....गुज़रते देखा हैं
फिरभी हर सांस के साए मैं
खुद को भरमाने .निकला हूँ

वो सुर्ख हसीं हाथों की हिना
चेहरे पे दिए सी उज्जवलता
बस याद रह गई ...हैं बांकी
यादों के बहाने ....निकला हूँ
जैसे हो याद ...लड़कपन की, ओर उसको भुलाने निकला हूँ

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