Tuesday, December 14, 2010

बुधना की लड़की .........


आजकल
उस झोपड़पट्टी के
हर अधकचरे चौराहे पे
बस एक बात बेशर्म हो रही हैं
की बुधना की लड़की
जवान हो रही हैं
इस बात का एहसास
बुधना से पहले
गली के उन आवारा लोंडों
को होने लगा था
जो उसकी ग़रीबी मैं से झाकते जिस्म को
अपनी आँखों से तराशते रहते थे
गली के नुक्कड़ पर
दारू की नई दुकान खुल रही हैं
बुधना की लड़की जवान हो रही हैं

बुधना के चेहरे पर
चड़ा हुआ ग़रीबी का जंग
आभाओ की बारिश मैं
गहराने लगा हैं
उसकी उखड़ती साँसे
मिल की चिमनी से निकलते
धूए सी लगने लगी हैं
बुधना की जागी आँखे
सोई किस्मत पे रो रही हैं
बुधना की लड़की जवान हो रही हैं

बुधना की घरवाली ने
उन छोटे छोटे जेवरों को
सहेज कर रखा हुआ हैं
जिन्हे कभी
बुधना ने अपना प्यार जताने के लिए
मिल की भट्टी मैं
ओवर टाइम का ईधन डाल कर
उसके लिए खरीदे थे
वो आजकल
उस पूराने संदूक मैं रखे
डब्बे मैं से उस
एक एक रुपये को
जिसे उसने अपना ओर बुधना का
पेट काट कर बचाया था
रोज गिन रही हैं
बुधना की लड़की जवान हो रही हैं

मेरे शहर मैं
ऐसी कई झोपड़पट्टियाँ
कई बुधना
ओर कई बुधना की लड़कियाँ हैं
जो जवान हो रही हैं
पर उनका भविष्य
सिर्फ़ गली के आवारा लोंडो
राशन की लाईनो
दारू की दुकानों तक ही
क्यों सीमित रह जाता हैं
आख़िर क्यों फ़र्क कर जाते हैं
हम खुद की लड़कियों
ओर बुधना की लड़की मैं
फिलहाल बुधना के चेहरे पे
चड़ा ग़रीबी का जंग
पथराने लगा हैं
बुधना की घरवाली के संदूक मैं
बीमारी ने सेध लगा दी हैं
मेरी नज़र
बुधना की झोपड़ी से सटे सरकारी बोर्ड पर पड़ती हैं
जिस पर लिखा हैं
खुशहाल बालिका देश का भविष्य हैं
पर सोचता हूं
देश का भविष्य
खुशहाल बालिका हैं
या बुधना की लड़की

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