Monday, December 13, 2010

मेरी बेटी ....

आज बेटियों का  दिन हैं

मेरे कुरते पे.......... चाँदी सी जरी हैं
मेरी ज़न्नत की वो..... नन्ही परी हैं!

अचानक सा निकलता कद हैं उसका
वो अपनी माँ से बस कुछ ही बड़ी हैं!

बहुत जिद्दी हैं..... गुस्सा भी बहुत हैं
वो बचपन से ही.... नाजौं मैं पली हैं!

मैं खेलूंगी मुझे वो........ चाँद ला दो
वो परसों से.... इसी जिद पे अड़ी हैं!

मेरा ही नक्श हैं आदत भी मुझसी हैं
सीरत मैं पर वो दो कदम आगे खड़ी हैं

मेरा हर गोशा रोशन हैं उसके आने से
वो दिवाली के..... दीपो सी....लड़ी हैं

वो इक दिन... छोड़ कर जाएगी मुझको
मुझे लगता हैं दरवाजे पे इक डोली खड़ी हैं


3 comments:

  1. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

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  2. wow sir bahut achi rachna nai ise rachna nai kaha ja sakta jo bhi hai bahut hi achi hai padh kar pata kya laga kaaas kaash ki aap mere papa hote............................. really

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  3. वाह हरीश जी
    मिताली को कविता मैं उकेर कर अपने उसे सचमुच बहुत खूबसूरत तौहफा दिया हैं जन्मदिन का

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