Friday, December 17, 2010

इश्क़ की इंतेहा हैं या हैं फरेब ..........


जिंदगी मैं कुछ पल एसे भी आते हैं जब परिस्थितियों पर हमारा अख्तियार नही रहता उस कशमकश को लोगो ने अलग अलग नाम दिया हैं कुछ अश्आर इन्ही लम्हात के नाम..............
सब्र का इम्तिहान लेते हो
यूंही कहदो की जान लेते हो!

दुश्मनो को तो आजमाना था
दोस्तों का ईमान लेते हों!

इश्क़ की इंतेहा हैं या हैं फरेब
मैं जो कहता हूँ मान लेते हो!

तुम पे इल्ज़ाम भी तो कैसे हो
तुम कहाँ मेरा नाम लेते हो!

मैं तो बदनाम था ही मुद्दत से
तुम भी दिल से ही काम लेते हों!

हौसला हैं तो जान देने का
क्यों यूं तिनके को थाम लेते हों!

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