Friday, December 17, 2010

हाँ ये मुश्किल तो ना था....


दोस्तो कुछ नई पंक्तियाँ रखता हूँ आपके समक्ष आपके समर्थन मैं आप ही की रचनाओ का असर ले कर

अब किसी से भी कोई वफ़ा करता नही
ए खुदा दुनिया मैं तेरी तन्हा कोई रहता नही

जिसको देखो सब शरीक-ए-जुर्म हैं इस दौर मैं
लाख ढूँढो आदमी खुद से जुदा मिलता नही

सोचता हूं ख़ुदकुशी की कोन सी सूरत करूँ
सर पटकने को वो संग-ए-आस्तां मिलता नही

खुद ही अपने आपको खतभी लिखे तो कब तलक
दिलको बहलानेका ये तरीका यूँभी कुछ जचता नही

दोस्ती इंसानियत की बात मैं कब तक करूँ
भूख की शिद्दत मैं जब ईमान तक बचता नही

सर बदलने की यहाँ मैने बहुत कोशिश करी
तुम भी इज़्ज़तदार थे तुमसे भी तो कटता नही

चाहता था छोड़ देना मैं मोहब्बत का चलन
हाँ ये मुश्किल तो ना था पर इतना भी आँसा नही

(संग-ए-आस्तां-महबूब की चौखट का पत्थर)

2 comments:

  1. nice sir and thanks too main jo shabd nahi samjhi uska arth aapne pahle hi likh diya

    ReplyDelete
  2. आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

    ReplyDelete