Wednesday, March 2, 2011

क्यों न मैं शंकर हो जाऊं



महाशिवरात्रि की शुभकामनाओं के साथ समर्पित

ईश्वर,, ऐसा वर दे मुझको ! 
क्यों न मैं, शंकर हो जाऊं !!
विष पिलूं मैं, जग का सारा ! 
नीलकंठ, जग में कहलाऊँ !!

हो प्रदीप्त ये... छाया मेरी !
दोष विहीन हो, काया मेरी !!
आदर्शों की, भस्म रमा कर !
ओरों को, सत्पथ पर लाऊं  !!
ईश्वर,, ऐसा वर दे मुझको ! क्यों न में, शंकर हो जाऊं !!

हो त्रिशूल वो, कर में ऐसा !
श्रीहरी के हो, वज्र के जैसा !!
दुष्कर्मों का, नाश करे जो !
पाशुपास्त्र, तुरीण मैं ऐसा !!
दुष्टों का, संहार कर सकूं !
नभ में, धर्मध्वजा लहराऊँ !!
ईश्वर,, ऐसा वर दे मुझको ! क्यों न में, शंकर हो जाऊं !!

शैल सुता, हिम्मत हो मेरी !
क्रोधाग्नि,, ताकत हो मेरी !!
तम मेरा,, सहचर हो जाये !
तिमिर संग, संगत हो मेरी !!
अवगुण मेरे, गुण बन जाये !
अपने में ....परिवर्तन लाऊं !!
ईश्वर,, ऐसा वर दे मुझको ! क्यों न में, शंकर हो जाऊं !!

संहारक, शिवदूत भी मैं हूँ !
दुख्भंजक अवधूत भी मैं हूँ !!
नीलेश्वर कालेश्वर भी मैं !
सोमनाथ औ' भूत भी मैं हूँ !!
पार्वती अर्धांग हो.... केवल !
सति को ही हर रूप मैं पाऊँ !!
ईश्वर,, ऐसा वर दे मुझको ! क्यों न में, शंकर हो जाऊं !!

4 comments:

  1. आपको भी महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें

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  2. शिवरात्री की बहुत बहुत शुभकामनाये
    हरीश जी इस संसार में शिव एक है और एक ही रहेगें
    हम आम इंसान उनकी तुलना भी खुद से नहीं कर सकते
    कविता के भाव बहुत अच्छे है ....ऐसे ही आप लिखते रहे

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  3. @ अंजू जी पूर्णतया सहमत हूँ आपसे की शिव एक ही है और एक ही रहेगा आम इंसान की तुलना नहीं की जा सकती पर उनके गुणों को ग्रहण करने की कोशिश तो की जा सकती है न और शायद इस रचना का भाव वही है अगर मैं लेखक के मनःस्थिति तक पहुँच पाई हूँ तो

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  4. हरीश जी काफी उम्दा रचना है हर भाव बहुत खुबसूरत
    कहा जाता है की शिव की पूजा शिव(जैसा) बनकर ही की जाती है और आपने वही कामना भी की है | सच ही लिखा है की हर अवगुण शिव के पास जाकर गुण में परिवर्तित हो जाता है और इस बात को खुद में धरने की बात की आपने बहुत अच्छा लगा | अनुकरणीय हैं यह पंक्तियाँ "अवगुण मेरे गुण बन जाये
    अपने में परिवर्तन लाऊं "

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