Friday, April 15, 2011

यहाँ हमदर्द कम हैं,


ये दुनिया किसको, रास आई बहुत हैं
यहाँ हमदर्द कम हैं, तमाशाई बहुत हैं

निगाहें अब भी, झुक जाती हैं अक्सर
वो बचपन से मुझसे, शरमाई बहुत हैं

न माना वो जरा सी बात पर लड़ बैठा
बात उसको किसी ने समझाई बहुत हैं

जला दिल किसका, फिर पूछो न यारों
जबां खुश्क पेशानी पे, गरमाई बहुत हैं

जिसकी दुआओं से, घर मेरा रोशन हैं
उस की मोहब्बत, मैंने ठुकराई बहुत हैं

तुझे हर शक्ल में... पहचान सकता हूँ
खुदा मेरे मुझे इतनी भी बीनाई बहुत हैं

सलीके से यहाँ पर..... कौन मिलता हैं
जहाँ भी भीड़ हैं देखो वो तन्हाई बहुत हैं

मैं अब खामोश हूँ तो ,तुम क्यों हैरां हो
मुझे चुप करके दुनिया, पछताई बहुत हैं

2 comments:

  1. harish ji, jindazgi ki bahut hi sachchhai bayan karti sunder rachna .

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  2. ये दुनिया किसको रास, आई बहुत है
    यहाँ हमदर्द कम हैं, तमाशाई बहुत हैं
    वाह बिलकुल सही लिखा है ये कहने को दो पंक्तियाँ हैं पर बहुत कुछ है इन दो पंक्तियों में |

    जिसकी दुआओं से घर मेरा रोशन है
    उस की मोहब्बत मैंने ठुकराई बहुत है
    कमाल की पंक्तियाँ हैं

    मैं अब खामोश हूँ तो तुम हैरां हो क्यूँ
    मुझे चुप करके दुनिया पछताई बहुत है
    ह्हहहहहहाहा ये तो लग रहा जैसे मेरे हीं दिल की बात बयां कर दी, मुझे अपने स्कुल के दिन याद आ गए जब कुछ टीचर मुझे चिढाने के धेय से कहते थे कितना बोलती हो आलोकिता मुंह दर्द नहीं करता है ? कभी तो चुप रहा करो और मैं सोचती अब नहीं बोलूंगी बिलकुल चुप चाप से बैठूंगी | जिस दिन भी चुप रहती सबको ऐसा लगता की इसकी तबियत ख़राब है और उस दिन सारे टीचर मुझे बोलवाने के पीछे पड़ जाते थे की आलोकिता की मम्मी आज इसको बहुत मारी है ताकि मैं बोलूं नो सर आप ही तो कल बोले थे ................................ या फिर सामने बैठी रहूंगी बोलेंगे आलोकिता तो नहीं आई है अटेंडेंस काट देते हैं मैं बोलती थी नो सर मैं यहीं हूँ लेकिन नहीं सुनते थे जब तक मैं चिल्लाऊं न बै सर siiiiiiiiiiiiiiiir यहीं तो हैं hahahahahahahahhaha

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