Thursday, April 7, 2011

कैक्टस होना

 
कथ्य का

आडम्बरहीन  होना,


कौन देखता हैं


आत्मसात करने को !


परिष्कृत हो जाना,


नीतिगत तो हैं,


पर व्यावहारिक नहीं!


इसलिए


उखाड़ ही देते हो तुम


पिछली दिवार पे


उग आया पीपल


कैक्टस होना ,


अनुवांशिक नहीं होता ,


पर उस पर खिला ,


बैगनी फूल,


गंध विहीन 


ही तो रहता हैं !!

3 comments:

  1. acchi aur prabhi rachna hai harish sir,,,
    aapki best me se ek..

    bahut dino baad aaya aapke blog par...

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  2. एक सारगर्भित रचना से परिचित कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद हरीश जी |

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