Tuesday, September 20, 2011

जख्मों को हरा रखना....


दुनिया बड़ी जालिम हैं,, ये होश जरा रखना
गिरने नहीं देना तुम, अश्कों को भरा रखना

पलकें भी उनीदीं हों,,, और चाक गरीबां हो
इतनी तो सनद रखना जख्मों को हरा रखना

कितना भी तक्कलुफ़ हो, कितनी भी बैचैनी
जलवों मैं न आना तुम, अंदाज खरा रखना

हर ईद दिवाली पर,, चाहे न मिलें फिर भी
याद आता हैं शिद्दत से, वो याद तेरा रखना

हाथों कि लकीरों मैं, कब उम्र बसी किसकी
मुश्किल तो नहीं होता यूं खुद को मरा रखना

आगाज से वाकिफ थे,, अंजाम भी था मालूम
आदत थी ये बस लेकिन नुक्तों में घिरा रखना

इंसानों कि बस्ती में, भगवान नहीं मिलते
खिड़की तो खुली रखना पर्दों को गिरा रखना

3 comments:

  1. वाह हरीश जी बेहतरीन
    इंसानों की बस्ती में भगवान् नहीं मिलते ... वाह

    ReplyDelete