Tuesday, February 14, 2012

प्रणय दिवस पर


सलीके से मुझे वो आज भी, पहचान लेती है !
मैं जब घर थक के आता हूँ हथेली थाम लेती है !!

न पूछा आज तक मैंने, न उसने ही कहा कुछ !
जुबां खामोश रहती है,, निगाहें जान लेती है !!

कभी जब ख़फा होती, सताने के लिए मुझको !
न रह पाती ज़ुदा मुझसे, यूंही बस मान लेती है !!

में आगे जा नहीं पाता, यहीं तक मेरी 'सीमा' हैं !
वो नजरों में रखती हैं,, जतन से काम लेती है !!

वो उसके गेसुओं में रात,, गहराती हैं जब भी !
मेरी हर आवारगी भी तो, वहीँ आराम लेती है !!

कोई जब पूछता हैं जिंदगी भर का सिला क्या हैं !
मैं उसका नाम लेता हूँ,,, वो मेरा नाम लेती है !!

यही बस जिक्र है उसका, यही पहचान है उसकी !
मेरी नज्में उसी का नाम, सुब्ह-ओ-शाम लेती है !!

हरीश भट्ट, हरिद्वार 

4 comments:

  1. सलीके से मुझे वो आज भी पहचान लेती हैं
    में घर थक के आता हूँ हथेली थाम लेती हैं

    कोई जब पूछता हैं जिंदगी का सिला क्या हैं
    में उसका नाम लेता हूँ,, वो मेरा नाम लेती हैं....प्यार की खुबसूरत अभिवयक्ति........

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  2. डबडबाई आँखों से न मुझे बहलाओ
    टूटते तारे का दर्द मैं भी जानती हूँ |...अनु

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  3. बेहद खुबसूरत रचना है सर, बहुत प्यारी अभिव्यक्ति बस यूँ समझ लीजिये इस अभिव्यक्ति के लिए जितनी भी तारीफ़ कि जाए सब फीके हीं नज़र आयेंगे
    सलीके से मुझे वो आज भी पहचान लेती है
    मैं घर थक के आता हूँ हथेली थाम लेती है ...............साधारण होते हुए भी विशिष्ट है ये एहसास

    कोई जब पूछता है जिन्दगी का सिला क्या है
    मैं उसका नाम लेता हूँ वो मेरा नाम लेती है ..............बहुत हीं प्यारी पंक्तियाँ

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  4. प्रेम का पावन भाव.... एक दूजे का साथ और सहारा ....
    गहन अभिव्यक्ति

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