Monday, February 20, 2012

ठहराव

 
पलकों का
उनींदापन

अब थम जायेगा

शायद,

सीने की हरारतों को

विराम भी !

छट जायेगा

वक़्त बेवक्त की उम्मीदों

का धुधलका ,

निकल जायेगा
वर्षों से पसरा
अनमना सा गुबार !

कम हो जाएगी
हथेलियों की तपिश ,
विस्मृत नहीं कर पायेगी
तारों के टूटने की झलक !
डूब जायेगा
झूठी तसल्लियाँ
देने मैं माहिर
सूरज ,
हमेशा के लिए
देवदार  के पेड़ों के पीछे !
अब न भरमायेगा
क्षितिज का
वो सम्मोहन ,

........
आज
मैंने तुम्हारा
आंखरी 
ख़त 
जला जो दिया हैं
........
अब उस
दराज में
खाली लिफाफे सा
ठहरा हुआ सा हूँ
बिना
पता लिखा हुआ
मैं..!!
--
Harish Bhatt

1 comment:

  1. बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

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