Sunday, September 13, 2015

जिंदगी कुछ यूं, गुजरनी चाहिये !


जिंदगी कुछ यूं, गुजरनी चाहिये !
कुछ शरारत सी भी होनी चाहिये !!

झूठ की बुनियाद पर, पैमां हैं जो !
वो ईमारत भी तो, ढहनी चाहिये  !!

दोस्तों की, आज़माईश के लिए !
तल्ख़ियां लहज़े में, रहनी चाहिये!!

टूट कर बरसे, ये  सावन की घटा !
इक ग़ज़ल ऐसी भी, कहनी चाहिये !!

तुममे मेरा अब, बचा भी कुछ नहीं !
रुख़सती, कह दो की करनी चाहिये !!

तुम जरा मुस्का के, मुड़ के देख लो !
इतनी ख़ुशफ़हमी तो रहनी चाहिये!!

लौट आयें वो परिंदे, रुख़-ब-रुख़ !
कुछ हवा ऐसी भी, बहनी चाहिये !!

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