Sunday, December 10, 2017

यूं ही

कल मैने धर्म पत्नी जी से कहा इस मिसरे पर कुछ तरही गजल सुझा दें मिसरा था ....

"न किसी राहबर न रहगुजर से निकलेगा "
धर्मपत्नी ने मज़ाहिया अंदाज में जो कहा आपकी नजर

मेरा तो अब उस दिन ये दर्द सर से निकलेगा !
जब ये चाबियों का गुच्छा कमर से निकलेगा !! सास को

कभी जो काम बताओ तो पढ़ाई का रोना हैं !
खबरदार जो छुट्टी के दिन तू घर से निकलेगा !! बेटे को

हर लम्हा नजर टिकी रहती हैं लाइक कमेंटों पे !
ये फेसबुकिया भूत कब तेरे सर से निकलेगा !! बेटी को

न जाने कब बंद होगा छत पे टहलना इसका !
न जाने कब ये पड़ोसन के असर से निकलेगा !!पति को

इस शहर के सब दुकानदार मुझसे वाकिफ हैं !
हैं कोई मॉल जो अब मेरी नजर से निकलेगा !! खुद को

No comments:

Post a Comment