Sunday, December 10, 2017

तुम्हें एक गज़ल चाहता हूँ सुनाना

सुनो अब चलेगा,.. न कोई बहाना ।
कहानी न कोई, ..न कोई फ़साना ।।

बहुत दूर तक साथ..... देता नही हैं ।
बहुत बेवफा हैं, ये जालिम जमाना ।।

पुराना शज़र कट गया, साल पहले ।
चलो और ढूढे, .नया अब ठिकाना ।।

मिरी जान ले जाएगा, ये किसी दिन ।
नजर को झुका कर, तेरा मुस्कुराना ।।

कई दिन से गुम हैं, तुम्हारी हसीं भी ।
तुम्हें हो पता तो, ...मुझे भी बताना ।।

मुझे याद हैं आज भी, ..वो तुम्हारा ।
बहाने बना कर, मिरी छत पे आना ।।

ज़रा पास बैठो, ...ज़रा मुस्कुराओ ।
तुम्हें इक ग़ज़ल, चाहता हूँ सुनाना ।।

हरीश भट्ट

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